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शुक्रवार, 30 मई 2014

illegal bangladeshi must be send back immediatly

कब और कैसे बाहर होंगे घुसपैठिए

मुद्दा पंकज चतुव्रेदी
बंगाल में प्रचार के दौरान जब नरेंद्र मोदी ने कहा था यदि उनकी सरकार आएगी तो बांग्लादेशियों को उनके देश वापिस भेज दिया जाएगा तो उनके इस बयान का व्यापक स्वागत हुआ था। इन दिनों देश की सुरक्षा एजेंसियों के निशाने पर बांग्लादेशी हैं। उनकी भाषा, रहन-सहन और नकली दस्तावेज इस कदर हमारी जमीन से घुलमिल गए हैं कि उन्हें विदेशी सिद्ध करना नामुमकिन सा लगता है। किसी तरह सीमा के अंदर घुस आये ये लोग अपने देश लौटने को राजी नहीं होते हैं । इन्हें जब भी देश से बाहर करने की कोई बात हुई, सियासत व वोटों की छीना-झपटी में उलझ कर रह गई। गौरतलब है कि पूर्वोत्तर राज्यों में अशांति के मूल में अवैध बांग्लादेशी ही हैं। जनसंख्या विस्फोट से देश की व्यवस्था लडखड़ा गई है। देश के मूल नागरिकों के सामने मूलभूत सुविधाओं का अभाव दिनों-दिन गंभीर होता जा रहा है। ऐसे में गैरकानूनी तरीके से रह रहे बांग्लादेशी कानून को धता बता भारतीयों के हक बांट रहे हैं। ये लोग यहां के बाशिंदों की रोटी तो छीन ही रहे हैं, देश के सामाजिक व आर्थिक समीकरण भी इनके कारण गड़बड़ा रहे हैं।
RASHTIRY SAHARA 31-5-2014http://rashtriyasahara.samaylive.com/epapermain.aspx?queryed=9
 हाल में मेघालय हाईकोर्ट ने भी स्पष्ट कर दिया है कि1971 के बाद आए तमाम बांग्लादेशी यहां अवैध रूप से रह रहे हैं। अनुमानत: करीब दस करोड़ बांग्लादेशी यहां जबरिया रह रहे हैं। 1971 की लड़ाई के समय लगभग 70 लाख बांग्लादेशी आए थे। अलग देश बनने के बाद कुछ उनमें से लाख लौटे भी पर उसके बाद भुखमरी, बेरोजगारी के शिकार बांग्लादेशियों का हमारे यहां घुस आना जारी रहा। पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, त्रिपुरा के सीमावर्ती जिलों की आबादी हर साल बढ़ रही है। नादिया जिले (प. बंगाल) की आबादी 1981 में 29 लाख थी जो 1986 में 45 लाख, 1995 में 60 लाख और आज 65 लाख पार कर चुकी है। बिहार में पूर्णिया, किशनगंज, कटिहार, सहरसा आदि जिलों की जनसंख्या में अचानक वृद्धि का कारण वहां बांग्लादेशियों की अचानक आमद ही बतायी जाती है। असम में 50 लाख से अधिक विदेशियों के होने पर सालों खूनी राजनीति हुई। वहां के मुख्यमंत्री भी इन नाजायज निवासियों की समस्या को स्वीकारते हैं पर इसे हल करने की बात पर चुप्पी छा जाती है। सुप्रीम कोर्ट के एक महत्वपूर्ण निर्णय के बाद विदेशी नागरिक पहचान कानून को लागू करने में राज्य सरकार का ढुलमुल रवैया राज्य में नए तनाव पैदा कर सकता है। अरुणाचल प्रदेश में मुस्लिम आबादी में बढ़ोतरी सालाना 135.01 प्रतिशत है, जबकि यहां की औसत वृद्धि 38.63 है । इसी तरह पश्चिम बंगाल की जनसंख्या बढ़ोतरी की दर औसतन 24 फीसद के आसपास है, लेकिन मुस्लिम आबादी का विस्तार 37 प्रतिशत से अधिक है। यही हाल मणिपुर व त्रिपुरा का भी है। जाहिर है, इसका मूल कारण यहां बांग्लादेशियों का निर्बाध आकर बसना और निवासी होने के कागजात हासिल करना है। कोलकता में तो ऐसे बांग्लादेशी स्मगलर और बदमाश बन कर व्यवस्था के सामने चुनौनी बने हुए हैं। राजधानी दिल्ली में सीमापुरी हो या यमुना पुश्ते की कई किलोमीटर में फैली झुग्गियां, यहां लाखों बांग्लादेशी डटे हैं। ये भाषा, खानपान, वेशभूषा के कारण स्थानीय बंगालियों से घुलमिल जाते हैं। बिजली, पानी की चोरी के साथ ही चोरी-डकैती, जासूसी व हथियारों की तस्करी में इनकी संलिप्तता बतायी जाती है। सीमावर्ती नोएडा व गाजियाबाद में भी यह ऐसे ही फैले हैं। इन्हें खदेड़ने के कई अभियान चले। कुछ सौ लोग गाहे-बगाहे सीमा से दूसरी ओर ढकेले भी गए लेकिन बांग्लादेश अपने ही लोगों को नहीं अपनाता नहीं है। फिर वे बगैर किसी दिक्कत के कुछ ही दिन बाद यहां लौट आते हैं। बताते हैं कि कई बांग्लादेशी बदमाशों का नेटवर्क इतना सशक्त है कि वे चोरी के माल को हवाला के जरिए उस पार भेज देते हैं । दिल्ली व करीबी नगरों में इनकी आबादी 10 लाख से अधिक हैं। सभी नाजायज बाशिंदों के आका सभी सियासती पार्टियों में हैं । इसी लिए इन्हें खदेड़ने के हर बार के अभियानों की हफ्ते-दो हफ्ते में हवा निकल जाती है। सीमा सुरक्षा बल यानी बीएसएफ की मानें तो भारत-बांग्लादेश सीमा पर स्थित आठ चेक पोस्टों से हर रोज कोई 6400 लोग वैध कागजों के साथ सीमा पार करते हैं और इनमें से 4480 कभी वापिस नहीं जाते। औसतन हर साल 16 लाख बांग्लादेशी भारत की सीमा में आ कर यहीं के हो कर रह जाते हैं। सरकारी आंकड़े के मुताबिक 2000 से 2009 के बीच कोई एक करोड़ 29 लाख बांग्लादेशी बाकायदा पासपोर्ट-वीजा लेकर भारत आए और वापिस नहीं गए। असम तो इनकी पसंदीदा जगह है। 1985 से अब तक महज 3000 अवैध आप्रवासियों को ही वापिस भेजा जा सका है। राज्य की अदालतों में अवैध निवासियों की पहचान और उन्हें वापिस भेजने के कोई 40 हजार मामले लंबित हैं। अवैध रूप से घुसने व रहने वाले स्थानीय लोगों में शादी करके यहां अपना समाज बना-बढ़ा रहे हैं। भारत में बस गए ऐसे करोड़ों से अधिक घुसपैठियों खाने-पीने, रहने, सार्वजनिक सेवाओं के उपयोग का न्यूनतम खर्च पचीस रपए रोज भी लगाया जाए तो यह राशि सालाना किसी राज्य के कुल बजट के बराबर होगी। जाहिर है देश में उपलब्ध रोजगार के अवसर, सब्सिडी वाली सुविधाओं पर से इन बिन बुलाए मेहमानों का नाजायज कब्जा हटा दिया जाए तो देश की गरीबी रेखा में खासी गिरावट आ जाएगी। इस घुसपैठ का सबका विकृत असर हमारे सामाजिक परिवेश पर पड़ रहा है। अपने पड़ोसी देशों से रिश्तों के तनाव का एक बड़ा कारण ये घुसपैठिए भी हैं। यानी घुसपैठिए हमारे सामाजिक, आर्थिक और अंतरराष्ट्रीय पहलुओं को आहत कर रहे हैं। नई सरकार इस समस्या से निबटने के लिए तत्काल अलग महकमा बनाये तो बेहतर होगा, जिसमें प्रशासन और पुलिस के अलावा मानवाधिकार व स्वयंसेवी संस्थाओं के लेग भी शामिल हों। यह किसी से छिपा नहीं है कि बांग्लादेश व पाकिस्तान सीमा पर मानव तस्करी का धंधा फल-फूल रहा है, जो सरकारी कारिंदों की मिलीभगत के बगैर संभव ही नहीं हैं। आमतौर पर इन विदेशियों को खदेड़ने का मुद्दा सांप्रदायिक रंग ले लेता है। यहां बसे विदेशियों की पहचान कर उन्हें वापिस भेजना जटिल प्रक्रिया है। कारण, बांग्लादेश अपने लोगों की वापसी सहजता से नहीं करेगा। दरअसल हमारे देश की सियासी पार्टियों द्वारा वर्ग विशेष के वोटों के लालच में इस सामाजिक समस्या को धर्म आधारित बना दिया जाता है। यदि सरकार इस दिशा में ईमानदारी से पहल करते है तो एक झटके में देश की आबादी का बोझ कम कर यहां के संसाधनों, श्रम और संस्कारों पर अपने देश के लोगों का हिस्सा बढ़ाया जा सकता है।
  

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