My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

शनिवार, 30 अगस्त 2014

Sad demises of Prof Bipan chandra


हमोर गुरूजी, इतिहासविद, प्रख्‍यात पंथनिरपेक्ष प्रो विपिन चंद्रा नहीं रहे, वे पांच साल हमारे अइध्‍यक्ष रहे व उन्‍होंने कई बेहतरीन पुस्‍तकों का योगदान दिया, आप का लेखन हर समय जिंदा रहेगा विपिन चंद्रा जी
बिपन चंद्रा से सम्बंधित मुख्य तथ्य
• बिपन चंद्रा वर्ष 1985 में भारतीय इतिहास कांग्रेस के अध्यक्ष (General President) रहे.
• बिपन चंद्रा वर्ष 1993 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सदस्य बने.
• उन्होंने नई दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में ऐतिहासिक अध्ययन केंद्र की अध्यक्षता की.
• बिपन चंद्रा वर्ष 2004 से 2012 तक नेशनल बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली के अध्यक्ष रहे.
• बिपन चंद्रा का जन्म हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी में 1928 को हुआ था.

बिपन चंद्रा की प्रमुख पुस्तकें
• आर्थिक राष्ट्रवाद का उदय और विकास
• स्वतंत्रता के बाद भारत (India after Independence)
• इन द नेम ऑफ़ डेमोक्रेसी: जेपी मूवमेंट एंड इमर्जेसी (In the Name of Democracy: JP Movement and Emergency)
• आधुनिक भारत में राष्ट्रवाद और उपनिवेशवाद (Nationalism and Colonialism in Modern India)
• सांप्रदायिकता और भारतीय इतिहास-लेखन (Communalism and the Writing of Indian History)
• भारत का आधुनिक इतिहास (History of Modern India)
• महाकाव्य संघर्ष (The Epic Struggle)
• भारतीय राष्ट्रवाद पर निबंध (Essays on Indian Nationalism)


दो पुस्‍तकों पर प्रो बिपन चंद्रा के साथ मेरा नाम जुडा हुआ है, एक है मेरी पुस्‍तक ''क्‍या मुसलमान ऐसे ही होते हें'', जो सन 2011 में आई थी शिल्‍पायन से और उसकी भूमिका सर ने लिखी थी , दूसरी पुस्‍तक थी भगत सिंह की, ''मैं नास्तिक क्‍यों हूं'', उसकी भूमिका प्रो बिपन चंद्रा ने लिखी थी, हालांकि इस पुस्‍तक के पहले भी कई अनुवाद हुए, लेकिन उनकी इच्‍छा थी कि मैं इसका अनुवाद नए सिरे से करूं, यह पुस्‍तक नेशनल बुक ट्रस्‍ट ने छापी थी ,

यहा उनसे जुडा एक वाकिया साझा करना चाहूंगा, लखनउ के प्रो प्रमोद कुमार ''अंडमान की दंडी बस्‍ती'' पर पुस्‍तक लिख रहे थे और उनहोंने सावरकार के माफी मांगने वाले प्रकरण को विस्‍तार से लिखा था, प्रो बिपन चंद्रा उन दिनों हमारे अध्‍यक्ष थे, उन्‍होंने मुझे बुला कर कहा कि उस पुस्‍तक में सावरकर वाला प्रकरण नहीं होना चाहिए, मैेने उनसे पूछा कि आखिर क्‍यों,

उनका जवाब था कि '' सावरकर का आकलन केवल उस एक घटना से नहीं किया जा सकता, 1857 पर उनी पुस्‍तक व स्‍वतंत्रता संग्राम में उनके संघर्ष को नकारा नहीं जा सकता है'' वे बिंदास, निष्‍पक्ष और निडर थे
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Pankaj Chaturvedi's photo.

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