My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

सोमवार, 18 अगस्त 2014

SAY NOT TO BT SEEDS

बेंगन से पहले याद करो  बीटी काटन !
पंकज चतुर्वेदी
DAILY NEWS JAIPUR 19-8-14http://dailynewsnetwork.epapr.in/323277/Daily-news/19-08-2014#page/7/1

भारत सरकार के कृशि मंत्रालय की संसदीय समिति की सर्वसम्मत रिपोर्ट साफ कह रही है कि जीन-संषोधित यानी जीएम फसलेंा का प्रयोग इंसान व जीन-जंतुओं पर बुरा असर डालता है।इसके बावजूद उत्तर प्रदेष सरकार ने पिछले साल ही अपने राज्य में कपास के बीटी बीजों को मंजूरी देने का मन बना लिया है। संसदीय समिति ने वैज्ञानिकों के एक स्वतंत्र समूह से इस पर मषवरा किया था। अब देष का सर्वोच्च अदालत द्वारा गठित तकनीकी विषेशज्ञ समिति की अंतरिम रपट भी जीएम फसलों को नुकसानदेह बता कर उसपर कम से कम दस साल की पाबंदी लगाने की सिफारिष कर चुकी है। जैसी कि समिति का सुझाव था कि इस तरह की फसलों के दीर्घकालीक प्रभाव के आकलन के लिए एक उच्च षक्ति प्राप्त कमेटी भी बनाई जाए, लेकिन अभी तक कुछ ऐसा हुआ नहीं है। इस तरह के चिंताजनक निश्कर्शों के बावजद राजनेताओं और औघोगिक घरानों की एक बड़ी लाॅबी येन केन प्रकारेण जीएम बीजों की बड़ी खेप बाजार में उतारने पर उतारू है। अब देखना है कि नई सरकार का इस पर क्या रवैया रहता है।
सनद रहे अक्तूबर-2009 में जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमेटी की हरी झंडी के बाद हिंदुस्तान में बीटी बैंगन की खेती व बिकी्र का रास्ता साफ हो गया था। बीटी बैंगन के पक्ष में दिए जा रहे तथ्यों में यह भी बताया जा रहा है कि बीटी काटन की ख्ेाती षुरू होने के कारण कपास पैदावार में भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर आ गया है। कहा जा रहा है कि इन बीजों की फसल पर सूखे का असर नहीं होगा, कीटनाषकों पर होने वाला खर्चा भी बचेगा, क्योंकि इस फसल पर कीड़ा लगता ही नहीं है। ज्यादा फसल का भी लालच दिया जा रहा है। भारत की षाकाहारी थाली में बैंगन एक पसंदीदा सब्जी है। इसकी जितनी जरूरत है, उतना उत्पाद हजरों किस्मों के साथ पहले से ही हो रहा है। ऐसे में षरीर की प्रतिरोधक क्षमता घटाने वाले तत्वों की संभवना और भरमार से बंटाधार करने वाली महंगी किस्म उगाने के लिए प्रेरित करना ना तो व्यावहारिक है और ना ही वैज्ञानिक। सबसे बड़ी बात , बीटी काटन के कड़वे अनुभवों पर सुनियोजित तरीके से पर्दा भी डाला जा रहा है।
 बीटी यानी बेसिलस थुरिनजियसिस मिट्टी में पाया जाने वाला एक बेक्टेरिया है। इसकी मदद से ऐसे बीज तैयार करने का दावा किया गया है , जिसमें कीटों व जीवों से लड़ने की क्षमता होती है। भारत की खेती अपने पारंपरिक बीजो ंस हाती है। किसान के खेत में जो सबसे अच्छी फली या फल होता है, उसे बीज के रूप में सहेज कर रख लिया जाता है। सरकारी फार्मों से नई नस्लों के बीज खरीदने की प्रचलन भ्ी बढ़ा है। बीटी बीजों की त्रासदी है कि इसकी फसल से बीज नहीं निकाले जा सकते, हर साल कंपनी से नए बीज खरीदना ही होगा।
बिना किसी नफा-नुकसान का अंदाजा लगाए सन 2002 में पहली बार बीटी कपास की खेती षुरू कर दी गई थी। किसानों ने तो सपने बोए थे, पर फसल के रूप में उनके हाथ धोखा, निराषा और हताषा  ही लगी थी। उस दौर में सरकारी अफसर तक किसानों के पीछे लगे थे कि यह नया अमेरिकी बीज है, ऐसी फसल मिलेगी कि रखने को जगह नहीं मिलेगी । हुआ ठीक उसका उलटा - खेत मे उत्पादन लागत अधिक लगी और फसल इतनी घटिया कि सामान्य से भी कम दाम पर खरीददार नहीं मिल रहे हैं । भारत में पहली बार बोए गए बायोटेक बीज बीटी काटन की पहली फसल से ही थोथे दावों का खुलासा हो गया था। तब बीज बेचने वाली कंपनी अपनी खाल बचाने के लिए किसानों के ही दोश गिनवाने लगी और अपने बीजों के दाम 30 फीसदी घटाने को भी राजी हो गई थी।
बेहतरीन फसल और उच्च गुणवत्ता के कपास के सपने दिखाने वाले बीटी काटन बीज पर्यावरणविदों के भारी विरोध और कर्नाटक और आंध्रप्रदेष में उसकी हकीकत उजागर होने के बावजूद मध्यप्रदेष में भी बोए गए । चार साल पहले दक्षिणी राज्यों में नए बीज की पहली फसल ने ही दगा दे दिया था। आंध्रप्रदेष में सन 2002 और 2003 में एक अध्ययन से स्पट हो गया कि बीज कंपनी के दावे के विपरीत फसयल कम हो रही, साथ ही बोलवर्म नामक कीड़ा भ्ी फसल में खूब लगा। इस मामले ने राजनैतिक रंग ले लिया था। तीन साल पहले राज्य के कृशि मंत्री ने विधानसभा में स्वीकारा थां कि बीटी काटन बीज अपनी कसौटी पर खरे नहीं उतरे । कपास के फूल का आकार छोटा है और उसकी पौनी भी ठीक से नहीं बनती है । इसी कारण नए बीज का उत्पाद बाजार में 200 से 300 रूपए प्रति कुंटल कम कीमत पर बिका ।
यहां जानना जरूरी है कि बीटी काटन बीज , बेहतरीन किस्म के अन्य संकर बीज से कोई प्रति पैकेट कोई एक हजार रूपए महंगा है। एक पैकेट को एक से डेढ़ एकड़ में बोया जाता है । बीज महंगा, दवा व खाद का खर्च ज्यादा और फसल भी कम ! आखिर किस तर्क पर सरकारी अमले इस विदेषी बीज की तारीफ में पुल बांध रहे हैं  ?
दो साल पहले मध्यप्रदेष में जिन ख्ेातों में बीटी काटन लगाया गया, वहां वीारानी छा गई थी । 70 प्रतिषत फसल तो वैसे ही सूख गई । कंपनी ने यहां कुछ किसानों को ही बीज बेचने का एजेंट बनाया था ।  कई फिल्मी हस्तियों, क्लब में नाचने वाली लड़कियों व भोज के आयोजन के माध्यम से इन बीजों का प्रचार-प्रसार सन 2004 में षुरू हुआ । यही नहीं कुछ किसानों के फोटो के साथ पोस्टर बांटे गए, जिनमें दावा था कि इनके खेतों में महिको-184 बीज के एक पैकेट में 25 कुंटल कपास पैदा हुआ । हकीकत में किसी भी खेते में पांच कुंटल से अधिक पैदावार हुई ही नहीं ।
प्रदेष के एक जिले धार में कपास की फसल पर एक सर्वेक्षण किया गया । किसान अनुसंधान एवं षैक्षणिक प्रगति संस्थान और संपर्क नामक दो गैरसरकारी संगठनों ने धार जिले के खेतों पर गहन षोध कर पाया कि बीटी बीज उगाने पर एक एकड़ में खर्च राषि रू. 2127.13 आती है, जबकि गैर-बीटी बीज से यह व्यय रू. 1914.86 ही होता है । प्रति एकड़ ज्यादा खर्च करने पर भी फसल लगभग बराबर होती है । यही नहीं बीटी कंपनियों का यह दावा गलत साबित हुआ कि नए जमाने के बीजों में छेदक इल्ली डेंडू का प्रकोप नहीं होता है । बीटी बीज वाले खेतोें में तीन-चार बार कीटनाषक छिड़कना ही पड़ा । विडंबना है कि नए बीजों के हाथों किसानों के लुटने के बावजूद राज्य सरकार इन बीजों  को थोपने पर उतारू है ।
वैसे अब किसानों को बीटी काटन की धोखाधड़ी समझ आ गई है । अगली फसल के लिए किसानों ने एक बार फिर अपने पारंपरिक ज्ञान और प्रक्रिया को ही अपनाने की फैैसला किया है ।
अब बैगन की बारी है। किसानों पर दवाब बनाने के लिए कंपनी अब सरकारी कायदों और कर्ज आदि का सहारा ले रही है । गलत तथ्य तो पेष किए जा ही रहे हैं। यह क्यों नहीे बताया जा रहा है कि बीटी बीजों के फूलों से कीटों के परागण की नैसर्गिक प्रक्रिया बाध्य होगी और बेहतरीन बीज सहेज कर रखने की हमारी पारंपरिक खेती नश्ट होगी। देषभर से कोई दस हजार लोगों ने सरकार के इस निर्णय के खिलाफ पर्यावरण मंत्रालय को लिखा है। बीटी बीज बेचने वाली बहुराश्ट्रीय कंपनी ने सरकार में बैठे लोगों के बीच एक लाॅबी बना ली है। यह तय है कि आने वाले दिन किसानों के लिए नए टकराव व संघर्श के होंगे ।

पंकज चतुर्वेदी
नई दिल्ली -110070
संपर्क 9891928376


अमेरिका में बीटी बीज ्
मोनसेंटो ने सन 1996 में अपने देष अमेरिका में बोलगार्ड बीजों ाक इस्तेमाल ाुरू करवाया था। पहले साल से ही इसके नतीजे निराषाजनक रहे। दक्षिण-पूर्व राज्य अरकांसस में हाल के वर्शों तक कीटनाषक का इस्तेमाल करने के बावजूद बोलगार्ड बीज ों की 7.5 फीसदी फसल बोलवर्म की चपेट में आ कर नश्ट हो गई।  1.4 प्रतिषत फसल को इल्ली व अन्य कीट चट कर गए। मिसीसिपी में बोलगार्ड पर बोलवर्म का असर तो कम हुआ ,लेकिन  बदबूदार कीटों से कई तरह की दिक्कतें बढ़ीं।

इसे क्यों नजरअंदाज किया गया ?
दुनियाभर में कहीं भी बीटी फसल को खाद्य पदार्थ के रूप में मंजूरी नहीं मिली है। अमेरिका में मक्का और सोयाबीन के बीटी बीज कुछ खेतों में बोए जाते हैं, लेकिन इस उत्पाद को  इंसान के खाने के रूप में इस्तेमाल पर पाबंदी है। पूरे यूरोप में भी इस पर सख्त पाबंदी है। ऐसे में भारत में लोकप्रिय व आम आदमी की तरकारी बैंगन के बीटी पर मंजूरी आष्चर्यजनक लगती है। मामला यहीं रूकता नहीं दिख रहा है। भिंडी, टमाटर और धान के बीटी बीजों पर भी काम षुरू है।
बीटी बैंगन की अनुवांषिक अभियांत्रिक कमेटी में सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त बाहरी पर्यवेक्षक व प्रख्यात वैज्ञानिक  डा. पुश्प भार्गव के मुताबिक बीटी बैंगन पर मोंसेन्टो ंकपनी की रिपोर्ट पर आम लोगों की राय लेने के लिए अलबत्ता तो बहतु कम समय दिया गया था, फिर भी लगभग सभी राय इस बीज के विरोध में आई थीं। मंजूरी देते समय इन प्रतिकूल टिप्पणियों पर ध्यान ही नहीं दिया गया। भारतीय कृशक समाज  इसे देष की खेती पर विदेषी षिकंजे की साजिष मानता है। पहले बीज पर कब्जा होगा, फिर उत्पाद पर।
बीटी बीजों की अधिक कीमत और इसके कारण खेती की लागत बढ़ने व उसकी चपेट में आने के बाद किसानों की खुदकुषी की बढ़ती घटनाओं को नजरअंदाज करने के पीछे लेन-देन की भी खबरें हैं।

पंकज चतुर्वेदी
संपर्क 9891928376

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Do not burn dry leaves

  न जलाएं सूखी पत्तियां पंकज चतुर्वेदी जो समाज अभी कुछ महीनों पहले हवा की गुणवत्ता खराब होने के लिए हरियाणा-पंजाब के किसानों को पराली जल...