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सोमवार, 25 अगस्त 2014

Tea estate :exploitationn of labourer



मौत नाच रही है चाय बागानों में
                                पंकज चतुर्वेदी
DAINIK JAAGRAN NATIONAL EDITION 25-8-14http://epaper.jagran.com/epaper/25-aug-2014-262-edition-National-Page-1.html



जिस चाय की चुस्की से लोग तरोताजा होते हैं, उसे आपके प्याले तक लाने वाले इन दिनों मुफलिसी से तंग आ कर मौत को गले लगा रहे हैं । वैसे तो भारत के विदेशी मुद्रा भंडार के मुख्य आय स्त्रोतों में चाय निर्यात का स्थान शीर्ष पर रहा है , लेेकिन चाय बागानों की समस्याओं को सुलझाने के मामले में सरकार की प्राथमिकता में यह कभी भी नहीं रहा । एक तरफ चाय बागानों की लागत बढ़ रही है, दूसरी ओर चाय उद्योग पर आए रोज नए-नए कर लगाए जा रहे हैं और तीसरी तरफ मुक्त व्यापार की अंध-नीति के चलते अंतरराश्ट्रीय बाजार में हमारी चाय के दाम गिर रहे हैं । इसका सीधा असर उन लाखों लोगों पर सीधा पड़ रहा है जिनका जीवकोपार्जन पीढि़यों से चायबागानों पर निर्भर रहा हैं । आए रोज बागान बंद हो रहे हैं । सरकार घटते निर्यात पर तो चिंतित है लेकिन रोजगार के घटते अवसरों पर विचार करने को ही राजी नहीं हैं सरकार के इस फैसले से कोई तीन हजार छोटे चाय बागानों और उनमें काम करने वाले पंद्रह लाख से अधिक मजदूरों पर संकट के बादल छाते दिख रहे हैं । उल्लेखनीय है कि पिछले वित्तीय वर्श के दौरान देष में 120 करोड़ किलो चाय का उत्पादन हुआ था।
सन 1883 में ईस्ट इंडिया कंपनी का चीन में चाय के व्यापार पर से एकाधिकार समाप्त हो गया था । भारत में इसका विकल्प तलाशने के लिए 1834 में लार्ड विलियम बेंटीक की अगुआई में एक कमेटी गठित की गई थी । असम में एक छोटे से बागान में चाय की चीनी किस्म के ‘बोहेडा’ के बात और पौधे लगाए गए । इसी बीच बंगाल आर्टिलरी के मेजर राबर्ट ब्रूस ने पाया कि असम के पहाड़ी क्षेत्र में सिंगफोस नामक एक जनजाति चाय उगाती है । उसी समय इस स्थानीय प्रजाति ‘वीरीदीस’ का व्यावसायिक उत्पादन शुरू हुआ  था। चाय की यह किस्म चीन के उत्पाद से बेहतर सिद्ध हुई । कुछ ही दिनों में चाय का लंदन के लिए निर्यात  होने लगा । देखते ही देखते भारत विश्व का सर्वाधिक चाय उत्पादन और निर्यात करने वाला देश बन गया ।
इतने पुराने निर्यात उद्योग की समस्याओं पर गंभीरता से विचार करना तो दूर रहा, सरकार इसे समेटने पर उतारू है । उत्तरी बंगाल के जलपाईगुडी जिले के दुआर में गत तीन वर्श के दौरान 22 चाय बागान बंद कर दिए गए । उसमें काम करने वाले 40 हजार मजदूरों के परिवार भूख से बेहाल हैं । गत सात महीनों में 100 से ज्यादा मजदूर असामयिक मारे जा चुके हैं जिनमें 18 तो केवल बूंदापानी बागान के हैं। हाल ही में उत्तर बंगाल के 120 छोटे बागानों में तालाबंदी घोषित कर दी गई है । इससे कोई तीन हजार मजदूर बेरोजगार हो गए है । ये ऐसे बागान हैं, जिनके पास अपने कारखाने नहीं हैं । ये पत्ता तुड़वा कर दूसरों को बेचते थे । इनमें काम करने वाले लगभग 400 लोेग बिहार और उत्तर प्रदेश से हैं, जबकि शेष में से अधिकांश झारखंड के हैं । यहां भुखमरी की हालत बन रही है और मजदूर अब कुछ भी करने को आमदा हैं । वैसे भी यहां मिलने वाली मजदूरी बेहद कम होती है - आठ घंटे का मेहनताना महज  90 -95 रूपए। मजदूर बागानों पर कब्जा कर खुद ही पत्ती तोड़ कर बेचने की धमकी दे रहे हैं ।
असम के चाय बागानों में बेहद कम मजदूरी के भुगतान को ले कर संघर्श की स्थिति बन रही हैं । यही नहीं संसद के पिछले सत्र के दौरान सरकार ने स्वीकार किया था कि चाय बागानों में भुखमरी फैलने के कारण 700 लोग मार चुके हैं ।
वैसे वास्तविक आंकडे इससे कहीं अधिक हैं । लेकिन इसे स्वीकारना होगा कि श्रमिकों का षोशण अकेले बागान मालिकों के हाथों ही नहीं हो रहा है, बल्कि उनके कल्याण का दावा करने वाले श्रमिक संगठन भी इसमें पीछे नहीं हैं । कुछ साल पहले नवंबर महीने में जलपाईगुड़ी जिले के वीरापारा में डलगांव चायबागान में एक मजदूर नेता व उसके परिवार को जिंदा जलाने की घटना से यह बात उजागर हो चुकी है ।
चाय बागान मालिकों का कहना है कि मौजूदा प्लांटेषन लेबर एक्ट के प्रावधानों के चलते उनकी उत्पादन लागत अधिक आ रही है और इसके चलते वे बागान चलाने में सक्षम नहीं है । सनद रहे इस कानून के तहत बागान मालिक मजदूरों को मेहनताने का भुगतान तो करना ही होता है, साथ ही श्रमिकों के लिए मकान, चिकित्सा, बच्चों के लिए स्कूल, छोटे बच्चों के लिए झूला घर जैसी सुविधाएं मुहैया करवाना भी अनिवार्य है । इंडियन टी एसोषिएसन की मांग है कि प्लांटेषन कानून में संषोधन कर श्रमिक कल्याण का जिम्मा सरकार को लेना चाहिए, क्योंकि वे लेाग पर्याप्त टैक्स चुका रहे हैं ।
बेरोजगारी से हैरान परेशान मजदूरों की जब कहीं सुनवाई नहीं हुई तो वे सुप्रीम कोर्ट की शरण में गए थे । इंटरनेशनल यूनियन आफ फूड, एग्रीकल्चर,होटल, रेस्टोरेंट, केटरिंग, टौबेको प्लांटेशन एंड एलाइड वर्कस एसोशिएसन द्वारा दायर याचिका में कहा गया था कि उत्तर बंगाल के 18 बड़े चाय बागानों में काम करने वाले 17,162 कर्मचारियों के महनताने के 36.60 करोड़ रूपए का भुगतान नहीं किया जा रहा है । अब तक बागानों के 240 लोग खुदकुशी कर चुके हैं । याचिका में यह भी कहा गया था कि असम में बागानों को सन 2002 से गैरकानूनी तरीके से बंद कर दिया गया है । सर्वाधिक पढ़े - लिखे लोगों के राज्य केरल में में तो गत् 20 सालों से चाय बागान मजदूरों को पूरी मजदूरी ही नहीं मिली है ।  इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, भविष्य निधि विभाग, आठ राज्यों - असम, पश्चिम बंगाल,केरल, तमिलनाडू,त्रिपुरा,कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और उत्तरांचल को नोटिस जारी कर स्थिति की जानकारी देने के लिए कहा था । लेकिन सुप्रीम कोर्ट सरकार तो चला नहीं सकती हैं और सरकार में बैठे लोग कागज भरने व काम अटकाने में माहिर होते हैं। लिहाजा यह मामला भी वहीं अटका हुआ है।

              
पंकज चतुर्वेदी
नेषनल बुक ट्रªस्ट ,इंडिया
नई दिल्ली 110070



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