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शनिवार, 22 अगस्त 2015

sex Market on cyber world

Prabhat Meerut 23-8-15
सायबर पर फना होती यौन वर्जनाएं
पंकज चतुर्वेदी

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को गलत नहीं कहा कि वह लोगों के बेड रूम में दखल नहीं कर सकती, लेकिन जब लोगों का बेड रूम या निजी जीवन साईबर-संजाल की मंडी पर बिके और उसे देख कर लेाग चस्के लें तो जाहिर है कि सरकार की सामाजिक जिम्म्ेदारीब नती ही है। इंटरनेट पर कई करोड़ ऐसे वीडियो, फोटो, क्लीप उपलब्ध हैक्ं जिसमें होटल में ठहरे, पार्क में बैठे या किसी के भरोसे को खुफिया कैेमरे में टूटने के अंतरंग पल जाहिरा हो रहे हैं। कई बार लेागों को पता ीह नहीं चलता कि वे जिस हांटल में ठहरे थे या किसी षो रूम के ट्रयल रूम में कपड़े बदल रहे थ्ळो, उसकी तस्वीरे नेट पर खूब देखी जा रही हैं। बीते दिनों यह तसल्ली कुछ ही घंटे की रही कि चलों अब इंटरनेट पर कुछ सौ नंगी वेबसाईट नहीं खुलेंगी। एक तरफ कुछ ‘‘अभिव्यक्ति की आजादी’’ का नारा लगा कर नंगी साईटो ंपर पाबंदी की मुखालफत करते दिखे तो दूसरी ओर ऐसी साईटों से करोड़ो ंपीटने वाले सुपप्रीम कोर्ट के आदेष का छिद्रान्वेशण कर अपनी दुकान बचाने पर जुट गए। एक दिन भी नहीं बीता और अष्लीलता परोसने वाली अधिकांष साईट फिर बेपर्दा हो गईं। कुल मिला कर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने हाथ खड़े कर दिए कि सभी नंगी वेबसाईटों पर रोक लगाना संभव नहीं है। संचार के आधुनिक साधन इस समय जिस स्तर पर अष्लीलता का खुला बाजार बन गए हैं, यह किसी से दबा-छुपा नहीं है। कुछ ही महीने पहले ही देष के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीष ने भी नेट पर परोसे जा रहे नंगे बाजार पर चिंता जताई थी। यह विष्वव्यापी है और जाहिर है कि इस पर काबू पाना इतना सरल नहीं होगा। लेकिन दुर्भाग्य है कि हमारे देष के संवाद और संचार के सभी लोकप्रिय माध्यम देह-विमर्ष में लिप्त हैं, सब कुछ खुला-खेल फर्रूकाबादी हो रहा है।  अखबार, मोबाईल फोन, विज्ञापन; सभी जगह तो नारी-देह बिक रही है। अब नए मीडिया यानि वाट्सएप, वी चेट जैसी नई संचार तकनीकों ने वीडियो व चित्र भेजना बेहद आसान कर दिया है और कहना ना होगा कि इस नए संचार ने देह मंडी को और सुलभ कर दिया है। नंगेपन की तरफदारी करने वाले आखिर यह क्यों नहीं समझ रहे कि देह का खुला व्यापार युवा लेागों की कार्य वसृजन-क्षमता को जंग लगा रहा है। जिस वक्त उन्हें देष-समाज के उत्थान पर सोचना चाहिए, वे अंग-मोह में अपना समय , उर्जा व षरीर बर्बाद कर रहे है।।
अष्लीलता,या कंुठा और निर्लज्जता का यह खुला खेल आज संचार के ऐसेे माध्यम पर चल रहा है, जो कि हमारे देष का सबसे तेजी से बढ़ता उद्योग है । अपने मोबाईल पर ‘एडीयू’ टाईप करें (एडीयू यानि एडल्ट) पांच अंक वाले लोकप्रिय नंबर पर मैसेज करें । पलक झपकते ही आपके मोबाईल पर मैसेज होगा, जिसमें आपसे षपथ ली जाएगी कि आप वयस्क हैं । और फिर ऐसे ही द्विअर्थी भद्दे चुटकुलों की भरमार षुरू हो जाएगी । मामला यहीं नहीं रूकता है, चटपट उन्हें अपने मित्रों या परिचितों को फारवर्ड करने की होड़ लग जाती है और जवाब में ऐसी ही और गंदगी आ जाती है । इससे भी आगे इनकी चर्चा यार-दोस्तों और तो और परिवार में भी  होने लगती है । जो संचार माध्यम लोगों को जागरूक बनाने या फिर संवाद का अवसर देने के लिए हैं, वे अब धीरे-धीरे देह-मंडी बनते जा रहे हैं । क्या इंटरनेट ,क्या फोन,  और क्या अखबार ? टीवी चैनल तो यौन कंुठाआंे का अड्डा बन चुके हैं ।
इस समय देष में कोई 80 करोड़ मोबाईल उपभोक्ता हैं । हर दिन पचास करोड़ एसएमएस मैसेज इधर से उधर होने की बात  सरकारी तौर पर स्वीकार की गई है । इसमें से 40 प्रतिषत संदेष ऐसे ही गंदे चुटकुलों के होते हैं । यहां जानना जरूरी है कि इस तरीके से चुटकुलों के माध्यम से सामाजिक प्रदूशण फैलाने में मोबाईल सेवा देने वाला आपरेटर तो कमा ही रहा है, 58888 या ऐसे ही नंबरों की कंपनियां भी चांदी काट रही हैं , क्यांेकि हर ऐसे संदेष पर उनका हिस्सा तय होता है । लड़कियों से डेटिंग, बातचीत भी एसएमएस पर उपलब्ध हैं और ये अलग किस्म का यौन व्यापार है । एक अंजान महिला (इसमें भी षक है कि दूसरी तरफ कोई महिला ही है) से लिखा-पढ़ी में अष्लील बातें करें और अपनी कुठा षांत करें । यह बात दीगर है कि इस खेल के खिलाडि़यों के लिए महिला महज एक उपभोग का षरीर रह जाती है । अब तो वहाट्सएप् व ऐसे ही कई उपकरण मौजूद हैं जो दृष्य-श्रव्य व सभी तरह के संदेष पलक झपकते ही दुनिया के किसी भी कोने में विस्तारित हो जाते है। इन पर कोई अंकुष तो है नहीं, सो इस पर वह सब सरेआम हो रहा है जो कई बार वेबसाईटों पर भी ना हों।
बीएसएनएल के मोबाईल के मैदान में उतरने के बाद मोबाईल फोन गांव-गांव तक पहुंच गया है । दिल्ली, मुंबई ही नहीं इंदौर, अमदाबाद जैसे षहरों के स्कूली बच्चे भी इससे लैस दिखते हैं । विभिन्न मोबाईल कंपनियों का रिकार्ड गवाह है कि पिछले कुछ सालों से एसएमएस  और व्हाट्सएप का इस्तेमाल रिकार्ड तोड़ बढ़ा है । फिर अब तो पिक्चर मैसेज की बात हो रही है । कई बार तो मैसेज के चैनलों में ट्राफिक जाम हो रहा है। यह विडंबना ही है कि संचार की इतनी बेहतरीन सेवा का इस्तेमाल अष्लील चुटकुलों, भद्दे मजाक और भाशा अपभं्रष के लिए हो रहा है । मैसेज के अधिकांष चुटकुले यौन संबंध, स्त्री-देह के आकार-प्रकार, उसके वीभत्स उपभोग पर ही होते हैं । ऐसे जोक्स को पढ़ने व उन्हें आगे बढ़ाने का रोग महिलाओं में भी घर करना षर्म की ही बात हैं ।
आज आम परिवार में महसूस किया जाने लगा है कि ‘‘ नान वेज ’’ कहलाने वाले लतीफे अब उम्र-रिष्तों की दीवारें तोड़ कर घर के भीतर तक घुस रहे हैं । यह भी स्पश्ट हो रहा है कि संचार की इस नई तकनीक ने महिला के समाज में सम्मान को घुन लगा दी है । टेलीफोन जैसे माध्यम का इतना विकृत उपयोग भारत जैसे विकासषील देष की समृद्ध संस्कृति,सभ्यता और समाज के लिए षर्मनाक है । इससे एक कदम आगे एमएमएस का कारोबार है । आज मोबाईल फोनों में कई-कई घंटे की रिकार्डिग की सुविधा उपलब्ध है । इन फाईलों को एमएमएस के माध्यम से देशभर में भेजने पर न तो कोई रोक है और न ही किसी का डर । तभी डीपीएस, अक्षरधाम, मल्लिका, मिस जम्मू कुछ ऐसे एमएमएस है, जोकि देश के हर कोने तक पहुंच चुके हैं । अपने मित्रों के अंतरंग क्षणों को धोखे से मोबाईल कैमरे में कैद कर उसका एमएमएस हर जान-अंजान व्यक्ति तक पहुंचाना अब आम बात हो गई है । किसी भी सुदूर कस्बे में दो जीबी का माईक्रो एसडी कार्ड तीन सौ रूपए में ‘लोडेड’ मिल जाता है - लोडेड यानी अष्लील वीडियो से लबरेज।
आज मोबाईल हैंड सेट में इंटरनेट कनेक्शन आम बात हो गई है  और इसी राह पर इंटरनेट की दुनिया भी अधोपतन की ओर है। नेट के सर्च इंजन पर न्यूड या पेार्न टाईप कर इंटर करें कि हजारों-हजार नंगी औरतों के चित्र सामने होंगे । अलग-अलग रंगों, देष, नस्ल,उम्र व षारीरिक आकार के कैटेलाग में विभाजित ये वेबसाईटें गली-मुहल्लों में धड़ल्ले से बिक रहे इंटरनेट कनेक्शन वाले मोबाईल फोन खूब खरीददार जुटा रहे हैं । साईबर पर मरती संवेदनाओं की पराकाश्ठा ही है कि राजधानी दिल्ली के एक प्रतिश्ठित स्कूल के बच्चे ने अपनी सहपाठी छात्रा का चित्र, टेलीफोन नंबर और अष्लील चित्र एक वेबसाईट पर डाल दिए । लड़की जब गंदे टेलीफोनों से परेषान हो गई तो मामला पुलिस तक गया । ठीक इसी तरह नोएडा के एक पब्लिक स्कूल के बच्चों ने अपनी वाईस पिं्रसिपल को भी नहीं बख्शा । फेसबुक और अन्य सोषल साईट को सेक्स की मंडी बने हुए हैं वहां भाभी जैसे पवित्र रिष्ते से ले कर लड़कियों के आम नाम तक हजारों हजार नंगे फोटो से युक्त पेज बने हुए हैं। कुछ साईट तो कार्टून -स्केच में वेलम्मा व सविता भाभी के नाम पर हर दिन हजारों की धंधा कर रही हैं।
अब तो वेबसाईट पर भांति-भांति के तरीकों से संभोग करने की कामुक साईट भी खुलेआम है । गंदे चुटकुलों का तो वहां अलग ही खजाना है । चैटिंग के जरिए दोस्ती बनाने और फिर फरेब, यौन षोशण के किस्से तो आए रोज अखबारों में पढ़े जा सकते हैं । षैक्षिक,वैज्ञानिक,समसामयिक या दैनिक जीवन में उपयोगी सूचनाएं कंप्यूटर की स्क्रीन पर पलक झपकते मुहैया करवाने वाली इस संचार प्रणाली का भस्मासुरी इस्तेमाल बढ़ने में सरकार की लापरवाही उतनी ही देाशी है, जितनी कि समाज की कोताही । चैटिंग सेे मित्र बनाने और फिर आगे चल कर बात बिगड़ने के किस्से अब आम हो गए हैं । इंटरनेट ने तो संचार व संवाद का सस्ता व सहज रास्ता खोला था । ज्ञान विज्ञान, देष-दुनिया की हर सूचना इसके जरिए पलक झपकते ही प्राप्त की जा सकती है । लेकिन आज इसका उपयोग करने वालों की बड़ी संख्या के लिए यह महज यौन संतुश्टि का माध्यम मात्र है । वैसे इंटरनेट पर नंगई को रोकना कोई कठिन काम नहीं है, चीन इसकी बानगी है, जहां पूरे देष में किसी भी तरह की पोर्न साईट या फेसबुक पर पूरी तरह पाबंदी है। एक तो उन्हें खोला ही नहीं जा सकता, यदि किसी ने हैक कर ऐसा कुछ किया तो पकड़े जाने पर कड़ी सजा का प्रावधान हे। बीजिंग जैसे षहर में वाई-फाई और थ्रीजी युक्त मोबाईल आम हैं, लेकिन मजाल हैकि कोई ऐसी-वैसी साईट देख ले। यह सब बहुत ही समान्य तकनीकी प्रणाली से किया जा सकता है।
दिल्ली सहित महानगरों से छपने वाले सभी अखबारों में एस्कार्ट, मसाज, दोस्ती करें जैसे विज्ञापनों की भरमार है। ये विज्ञापन बाकायदा विदेषी बालाओं की सेवा देने का आफर देते हैं। कई-कई टीवी चैनल स्टींग आपरेषन कर इन सेवाओं की आड़ में देह व्यापार का खुलासा करते रहे है।। हालांकि यह भी कहा जाता रहा है कि अखबारी विज्ञापनों की दबी-छिपी भाशा को तेजी से उभर रहे मध्यम वर्ग को सरलता से समझााने के लिए ऐसे स्टींग आपरेषन प्रायोजित किए जाते रहे हैं। ना तो अखबार अपना सामाजिक कर्तव्य समझ रहे हैं और ना ही सरकारी महकमे अपनी जिम्मेदारी। दिल्ली से 200-300 किलोमीटर दायरे के युवा तो अब बाकायदा मौजमस्ती करने दिल्ली में आते हैं और मसाज व एस्कार्ट सर्विस से तृप्त होते हैं।
मजाक,हंसी और मौज मस्ती के लिए स्त्री देह की अनिवार्यता का यह संदेष आधुनिक संचार माध्यमों की सबसे बड़ी त्रासदी बन गया हैं । यह समाज को दूरगामी विपरीत असर देने वाले प्रयोग हैं । चीन , पाकिस्तान के उदाहरण हमारे सामने हैं , जहां किसी भी तरह की अष्लील साईट खोली नहीं जा सकती। यदि हमारा सर्च इंजन हो तो हमें गूगल पर पाबंदी या नियंत्रित करने  में कोई दिक्कत नहीं होगी और एक बार गूगल बाबा से मुक्ति हुई, हम वेबसाईटों पर अपने तरीके से निगरानी रख सकेंगें। कहीं किसी को तो पहल करनी ही होगी , सो सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीष पहल कर चुके हैं। अब आगे का काम नीति-निर्माताओं का है।

पंकज चतुर्वेदी
सहायक संपादक
नेषनल बुक ट्रस्ट

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