My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

रविवार, 13 सितंबर 2015

An overview on vishw Hindi Sammelan Bhopal

उम्मीदों आशंकाओं  और बाजार की हिंदी-वैश्विकता 
                                                                                                                          पंकज चतुर्वेदी

राज एक्सप्रेस . म प्र १४ सितम्बर 15
जहां एक वीरान सा लाल मिट्टी वाला मैदान था, उसे खूबसूरत पंडाल से पाट दिया गया है। सैंकड़ों वातानुकूलित सयंत्र बाहर की 39 डिगरी तापमान को 18 तक सर्द बनाए हुए हैं। उद्घाटन सत्र में प्रधानमंत्री, तीन-तीन वरिष्ठ  केंबिनेट मंत्री -श्रीमती सुषमा  स्वराज, डा. हर्ष वर्धन और रविशंकर प्रसाद, दो राज्य मंत्री केरण रिजूज और वी के सिंह, तीन राज्यपाल- रामनरेष यादव, सुश्री मृदुला सिन्हा, और केषरीनाथ त्रिपाठी। दो राजयों के मुख्यमंत्री - शि वराज सिंह चौहान  व रघुवरदास, एक दर्जन से ज्यादा सांसद, मप्र के कई मंत्री व विधायक.......। ऐसे अवसर बहुत ही कम आते हैं जब इतने सारे अतिविशिष्ट लोग किसी गैरराजनीतिक अवसर पर एकसाथ जमा हों।  और इतने बड़े-बड़े लेागों को सुनने के लिए एकत्र जनता-जनार्दन भी कम नहीं है। वह तो समापन समारोह में प्रख्यात अभिनेता अमिताभ बच्चन के दांत के दर्द के कारण आने से मना कर दिया, वरना भीड़ को संभालना मुश्किल  हो जाता।
बड़े से आकर्षक  पंडाल में देश -दुनिया के हिंदी प्रेमी, लेखक तो थें ही, भोपाल शहर का पूरा भाजपा कैडर सम्मेलन की सुचारू व्यवस्था के लिए बतौर प्रबंधक उपस्थित रहा। यहां अलग-अलग रंग के प्रवेश  पत्र हैं-  कोक रंग के भूरे कार्डधारी विषिश्ट अतिथि यानि जिनके आवागनम, ठहरने, स्थानीय आवागमन, भेाजन आदि की व्यवस्था पूरी तरह सरकार ने की है। ऐसे लेाग ज्यादा से ज्यादा 200 होंगे। फिर थे हरे कार्ड वाले अतिथि,  ये केवल नाम के अतिथि हैं ये अपनी गांठ से पैसा लगा कर आए , अपनी जेब से होटल में ठहरे  और सम्मेलन स्थल तक आने जाने का व्यय भी खुद वहन किया । इनकी संख्या भी 500 से ज्यादा नहीं होगी।  फिर है नीले कार्ड वाले प्रतिनिधि- इनमें जिलों से आए, विभिन्न संस्थाओं से आए  व पंजीयन राशि  चुका कर आए लोग हैं। ये होंगे कोई दो हजार। कह सकते हैं कि लगभग तीन हजार लोग हिंदी सम्मेलन से सीधे जुड़े हुए हैं। अब सम्मेलन स्थल पर सबसे ज्यादा लेाग हैं जिनके गले में भगवा रंग का रिबन हैं और उसी ंरग का पास। ये हें प्रबंधक। ये सुरक्षा, भेाजन से ले कर सभी जगह पर छाए हुए हैं। और इनकी संख्या तीन हजार से कम नहीं होगी। इनमें कुछ बच्चे माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विष्वविद्यालय के भी हैं जिनकी ड्यूटी, समाचार बनाने, कुछ विशिष्ट  लोगों को एस्कार्ट करने में है।
परिसर में घुसते ही दो किस्म की प्रदर्शनी  थीं,- दीवाने आम और दीवाने खास । दीवाने खास यानि मध्यप्रदेश शा सन व सिहंस्थ पर प्रस्तुति। बेहतरीन तरीके से प्रस्तुत व वातानुकूलति। उसके ठीक सामने है- ‘‘हिंदी: कल आज और कल’’ के नाम से प्रदर्शनी । यही हिंदी का असली चैहरा है। प्रदर्शनी के पाष्र्व पर बेहद बुझे से रंग का गहरा नीला कपड़ा लगा दिया गया है जो रोशनी को भी सोख रहा है और वहां प्रदर्षित सामग्री की चटक को भी। चूंकि प्रदर्शनी का यह हिस्सा हिंदी की असली तस्वीर है सो घुसते से ही माईक्रो साॅफ्ट, एप्पल, गूगल, वेबदुनिया आदि बहुराष्ट्रीय  कंपनियों को स्थान दिया गया है। सबसे आखिर में भारत सरकार के शा सकीय प्रकाश कों- राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, प्रकाश न विभाग, साहित्य अकादेमी, केंद्रीय हिंदी निदेषालय, विज्ञान प्रसार आदि को रखा गया है। कहने की जरूरत नहीं कि यह हिस्सा वातानुकूलित  तो थे ही नहीं, प्रदर्षनी के पिछले हिस्से तक पंखे तक नहीं थे। यहां प्रदर्षित पुस्तकों की बिक्री की अनुमति भी नहीं थी। जहां तक ‘‘बाजार ’’ था, वहां तक लोगों की सहूलियत का खयाल रखा गया, जहां साहित्य या ज्ञान था, वहां अंधकार, गरमी और असहजता को छोड़ दिया गया।
चाय-काफी, पानी आदि की असीमित व्यवस्था। राज्य सरकार के मुख्यमंत्री व कई मंत्री लगभग सारा दिन यहीं रहते। विमर्षों के दौरान कभी भी कोई हाल खाली नहीं रहा। जहां कहीं कुर्सियां खाली दिखती, माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विष्वविद्यालय व अटल बिहारी हिंदी विष्वविद्यालय के बच्चों की खेप तत्काल भेज दी जाती। हां, चर्चा के लिए बने हाॅल इतने करीब थे कि एक सत्र की आवाजें दूसरे हाॅल में जाती थीं और कई बार इससे व्यवधान भी होता। विभिन्न योजनओं के तह हिंदी सीख रहे विदेषी बच्चे मीडिया के आकर्शण का केेंद्र रहे। उल्लेखनीय है कि पत्रकारों को विभिन्न सत्रों में प्रवेष की अनुमति नहीं थी, उन्हें दिन भर हुए विमर्ष की जानकारी एकत्र करने के लिए तीन बजे होने वाले संवाददाता सम्मेलन का इंतजार करना पड़ रहा था।
सम्मेलन के लिए विदेष मंत्रालय के भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिशद की पत्रिका ‘‘गगनांचल’’ का उल्लेख भी बेहद अहम हैं क्योंकि इसका विमोचन स्वयं प्रधानमंत्री ने किया था। इसके संपादक ने अपने उद्बोधन में लिखा है ‘‘लवस्कार‘‘ पता नहीं यह प्रूफ की गलती है या फिर ‘‘हिंगलिष’’ का भोंडा प्रदर्षन। पत्रिका में पू्रूफ और संपादन की अपार गलतियां हैं। एक ही पेज पर ‘‘हिंदी ’’ कहीं बिंदी से लिखा है तो अगली पंक्ति में ही आधे ‘न’ से। एकरूपता, संक्षिप्तता और सहजता के मूल संपादकीय सिद्धांतों की खेले आम ‘‘हिंदी’’ की गई है। यह पत्रिका सभी विदेषी मंत्रालयों, हिंदी प्रषिक्षण केंद्र जाते हैं और यह हिंदी सम्मेलन के प्रति गंभीरता की बानगी है। वहींे विदेष मंत्रालय द्वारा प्रकाषित स्मारिका,  और ‘‘जोहान्सबर्ग से आगे’’ पुस्तक, राश्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा सभी अतिथियों को भेंटस्वरूप दी गई पुस्तक ‘‘हिंदी भाशाःस्वरूप, षिक्षण और वैष्विकता’’ बेहद स्तरीय व संग्रहणीय हैं।
हिंदी सम्मेलन का अगला हिस्सा था, विभिन्न हिंदी विद्वानों के नाम पर बने सभागार और जहां तक हिंदी सम्मेलन के सत्रों का सवाल है वे बेहद महत्वपूर्ण विशयों पर थे - सभी निहायत व्याहवारिक और परिणामोन्मुखिी और चूंिक सभी सत्रों की अध्यक्षता या वक्ता राज्यपाल से ले कर केंद्रीय मंत्री तक ने की  तो जाहिर है कि यहां व्यक्त किए गए विचार व सुझावों को  क्रियान्वयन स्तर तक ले जाने में कोई दिक्कत नहीं होगी। हां कुछ सत्रों में वक्ता ऐसे भी हैं जिनका उस क्षेत्र में योगदान या अनुभव उतना नहीं है जितना कि अन्य लोगों का है, ऐसे विशय में एक सबसे महत्वपूर्ण है-बाल साहित्य।  विदेषों में हिंदी षिक्षण को लेकर सत्र का आयोजन वास्तव में हिंदी के वैष्विक प्रसार का सार्थक कदम हैं तो विदेष नीति में हिंदी, भाशा के कूटनीतिक महत्व का नया आयाम है। विदेष नीति में हिंदी को लेकर आयोजित सत्र में कई महत्वपूर्ण सुझाव भी आए जिनमें विदेषी दूतावासों में हिंदी में कामकाज, पासपोर्ट में अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी आदि । हिंदी में प्रकाषन वाले सत्र के दौरान विदेषों मे ंरहने वाले हिंदी प्रेमियों की कृतियों के प्रकाषन की व्याहवारिक दिक्कतों पर बेहद परिणामदायी विमर्ष हुआ। प्रषासन और अदालतों में हिंदी पर भी महत्वपूर्ण सत्र रहे और यहां से निकले सुझावों पर अमल षुरू हुआ तो आम लोगों को इस सम्मलेन का महत्व पता चलेगा और लोगों को अहसास होगा कि जनता द्वारा चुकाए गए करों से आयोजित करोड़ों रूपए के व्यय वाले सम्मेलनों में भले ही उन्हें प्रवेष ना मिला हो, लेकिन भीतर जो विमर्ष हुए और जो परिणाम निकले, वह उनके लिए ही थे। इसमें कोई नहीं कि अपनी भव्यता और भीड़ के लिए 10वंा विष्व हिंदी सम्मेलन सालों तक याद रहेगा।

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