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गुरुवार, 22 सितंबर 2016

Merging railway budget with annual : One step ahead for privatisation of railway

रेलवे के निजीकरण की ओर एक और कदम: अलग बजट की
समाप्ति

                                                                   पंकज चतुर्वेदी

यह अचानक नहीं हो गया, इस साल के षुरूआत में ही योजना आयोग को समाप्त कर बने नीति आयोग के  सदस्य विवेक देबरॉय की अध्यक्षता वाली एक कमेटी ने अलग रेल बजट पेश करने की आवश्यकता को समाप्त करने और इसे आम बजट में मिलाने की सिफारिश की थी। पिछले महीने सरकार ने इस मुद्दे पर सुझाव देने के लिए वित्त और रेलवे मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारियों की पांच सदस्यों कर समिति बनाई थी। जब मंत्री से ले कर सब की राय थी तो जाहिर है कि समिति को महज इसकी प्रक्रिया तय करने का तरीका बतना था।
  अफसरों की समिति ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के इस बड़े उपक्रम को 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों को अमल में लाने के लिए 40,000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ उठाना होगा। इसके अलावा उसे सबसिडी के रूप में 32,000 करोड़ रुपए सालाना खर्च करना होगा। दोनों बजटों को मिलाने से रेलवे को सालाना लाभांश से छुटकारा मिल जाएगा। रेलवे को हर साल सकल बजट समर्थन के एवज में यह लाभांश सरकार को देना होता है। दोनों बजटों के विलय से किसी तरह का कोई मुद्दा खड़ा होने की आशंका नहीं है। यह मूल रूप से प्रक्रियात्मक ही होगा। इससे सरकार की बजट गणना पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।  21 सितंबर की षाम केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आम बजट को रेल बजट में विलय संबंधी प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। हो सकता है कि बजट भी एक फरवरी को ही पेश हो जाए।
सनद रहे कि सन 1924 से अभी तक यानि 92 साल पहले रेल को आम बजट से अलग प्रस्तुत करने की षुरूआत हुई थी। साल 1921 में ईस्ट इंडिया रेलवे कमेटी के अध्यक्ष सर विलियम एक्वर्थ ने यह देखा कि पूरे रेलवे सिस्टम को एक बेहतर प्रबंधन की दिशा में ले जाने की ज़रूरत है। साल 1924 में उन्होंने आम बजट से रेल बजट को अलग करने का प्रस्ताव रखा, जिसके बाद से अलग बजट व्यवस्था की नींव रखी गई। उस दौर में पूरे देश के बजट में रेल बजट की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत थी। इसी लिए रेल बजट को अलगग बनाने की बात आई। गौर तलब है कि उस समय रेलवे का सार्वजनिक परिवहन में रेलवे की भागीदारी 75 प्रतिशत और माल ढुलाई में 90 प्रतिशत थी। आज माल ढुलाई में ट्रकों की संख्या बढ गई है और इस तरह रेल बजट का वह स्वरूप् नहीं रह गया जो कि आजादी के पहले था। देश के बजट में रेल बजट की इतनी अधिक हिस्सेदारी देखकर रेल बजट को आम बजट से अलग करने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया। उस दौर से लेकर अब तक रेल बजट को आम बजट से अलग पेश किया जाता है। जब रेल बजट को आम बजट से अलग किया गया था, उस समय रेलवे का प्रयोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट में 75 फीसदी और माल ढुलाई में 90 फीसदी तक होता था।
तब से आमतौर पर 25 फरवरी को रेल बजट आता है ं। उसके एक या दो दिन बाद वित्त मंत्री आम बजट पेश करते हैं। लेकिन अब एक ही बजट में रेलवे का भ्ी उल्लेख होगा। आम आदमी के लिए ये बदलाव इस लिहाज से खास होगा क्योंकि अब तक रेल किराये बढ़ेंगे या नहीं बढ़ेंगे ये फैसला रेलमंत्री लिया करते थे लेकिन अब इसपर अंतिम मुहर वित्त मंत्री की होगी। हालांकि जनता की अब बजट में कोई रूचि रह नहीं गई है क्योंकि रेल किराये से ले कर आम सामान तक के दाम सारे साल कभी भी बढ़ते रहते हें और बजट तो महज कारपोरेट के लाभ-हानि का आईना मात्र होता है।

भारतीय रेल  एशिया का सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है तथा एकल प्रबंधनाधीन यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। सबसे अधिक रेाजगार , लगभग 16 लाख लेागों को नौकरी देने वाला रेलवे भारत के परिवहन, अर्थ, सांस्कृतिक एकता, पर्यटन आदि की रीढ़ है। समय  के साथ रेल, रेलवे की ुसविधाएं, यात्री सभी कुछ बढ़ रहे हैं व लेागांे की अपेक्षाओं की पूर्ति के लिए रेलवे में रेल इंडिया टेक्नीकल एवं इकोनॉमिक सर्विसेज़ लिमिटेड (आर आई टी ई एस) इंडियन रेलवे कन्स्ट्रक्शन (आई आर सी ओ एन) अंतरराष्ट्रीय लिमिटेड इंडियन रेलवे फाइनेंस कॉर्पाेरेशन लिमिटेड (आई आर एफ सी) कंटनेर कॉर्पाेरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (सी ओ एन सी ओ आर) कोंकण रेलवे कॉर्पाेरेशन लिमिटेड (के आर सी एल) इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कॉर्पाेरेशन लिमिटेड (आई आर सी टी आर) रेलटेल कॉर्पाेरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (रेलटेल) मुंबई रेलवे विकास कॉर्पाेरेशन लिमिटेड (एम आर वी सी लिमिटेड.) रेल विकास निगम लिमिटेड (आर वी एन आई) जैसे कई उपक्रम स्थापित किए गए हैं। रेलवे के आधुनिकीकरण, गति, सुविधाओं में  निजी कंपनियों की नजर लंबे समय से रही है। लेकिन रेलवे की यूनियनें बहुत मजबूत हैं  और वे निजीकरण का विरोध करती रही है। हालांकि रेलवे में आ रही नई पीढ़ी तकनीकी  और व्यावसायिक शिक्षा ले कर आ रही है और इससे यूनियन साल दर साल कमजोर हो रही हैं। निजीकरण  का यही अनुकूल माहौल होता है।
चूंिक अब रेलवे बजट आम बजट का ही हिस्सा होगा, जाहिर है कि आम बजट में व्यावसायिक घरानों के लिए स्थापित नीतियों, सुविधाओं का लाभ अब रेलवे के लिए भी खुल जाएगा। नीतिगत निर्णय आम बजट के होंगे व आय-व्यय का हिसाब रेलवे का। ऐसे में रखरखाव, केटरिंग जैसे क्षेत्रों में निजी कंपनियों की संभावनाएं आम बजट की किसी नीति के तहत ही खुल जाएंगी और पूरे बजट के हल्ले में यह पता भी नहीं चलेगा। यही नहीं रलवे से होने वाली आय व व्यय अब आम बजअ में जुड़ जाएगी। इसका सबसे बड़ा नुकसान यह होगा कि रेलवे भीअ न्य सरकारी विभागों की तरह एक महकमा बन जाएगा, जबकि अभी तक रेलवे को एक व्यावसायिक प्रतिष्ठान माना जाता रहा है। जो कि अपने विस्तार, आधुनिकीकरण, शोध व प्रबंधन का कार्य एक कंपनी की तरह करता था।

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